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RAMMANOHAR LOHIA RACHNAWALI (9 VOL. SET)

Binding:Hardback
Released:2025

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मार्क्सवाद उस्ताद कुम्हार को यूरोप में स्थापित करता है और एशिया में शागिर्दों को। इस प्रकार एशिया के देश विचार और कर्म की अपनी स्वतंत्राता खो देते हैं

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About the Book

मार्क्सवाद उस्ताद कुम्हार को यूरोप में स्थापित करता है और एशिया में शागिर्दों को। इस प्रकार एशिया के देश विचार और कर्म की अपनी स्वतंत्राता खो देते हैं। उनका मूल्य बन जाता है यूरोप के ‘महान युयुत्सुओं’ की सेवा करना। एशिया मानव के नए भाग्य का निर्माता नहीं बन सकता, उसे यूरोप द्वारा लादी गई नियति का आज्ञाकारी सिपाही ही बनना है। गरीबी और युद्ध पूंजीवाद की राक्षसी संतानें हैं। दो-तिहाई मानवता के लिए गरीबी और शेष के लिए युद्ध। वह अपनी इन दोनों संतानों को नाश करने में लगा है। लेकिन रंगीन लोगों की भयानक गरीबी के बीच स्वतंत्रा उद्यम तथा नैतिकता और स्वार्थों के सामंजस्य द्वारा लोकतंत्रा प्राप्त करना असंभव है और कितनी ही मुश्किलों द्वारा राष्ट्रीय स्वतंत्राता प्राप्त की गई हो, उसे बचाना कठिन है। बिना हथियारों के अन्याय से लड़ने का तरीका निकालना पड़ेगा। इसका तरीका निकला भी है। सिविल नाफरमानी की क्रिया में न्याय और समता प्राप्त करने की उस मनुष्य की अदम्य प्रवृत्ति प्रकट होती है जिसके हाथ में हथियार नहीं है। हथियारों के खात्मे की तरह गरीबी का अंत भी अपने आप नहीं हो जाएगा। दोनों के लिए लगन के साथ यत्न करना पड़ेगा। हथियार और गरीबी में गरीबी बिला शक, ज्यादा मारक रोग है। लेकिन हमारे युग और उसके प्रभावशाली वर्गों के विश्वास ऐसे हैं कि हथियार ज्यादा बड़ा रोग प्रतीत होता है। साम्यवाद को उत्पादन साधन (प्रौद्योगिकी) पूंजीवाद से विरासत में प्राप्त होती है। वह पूंजीवादी उत्पादन संबंधों को ध्वस्त करता है। दो-तिहाई दुनिया के लिए पूंजीवादी प्रौद्योगिकी का क्या अर्थ रहा है, साम्यवादी सिद्धांत इसे पचा नहीं सका है। वहां उत्पादन शक्तियां नगण्य हैं और जनसंख्या विशाल है। इन पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं में साम्यवादी विवेकीकरण और उत्पादन शक्तियों का तापगृह-पोषण असंभव है। अभूतपूर्व हत्याओं के द्वारा भी यह करीब-करीब असंभव ही है। आज विश्व अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा खतरा मानव-जाति के दो-तिहाई के उत्पादन-यंत्रों से है। ये यंत्रा उन्नत तकनीक और विज्ञान की सुविधा से वंचित हैं और विदेशी पूंजीवादों के बोझ से पिस रहे हैं। इन यंत्रों के श्रम से उत्पादन निरंतर गिरता गया है। इन यंत्रों के 500 करोड़ श्रम-घंटे पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं के 250 करोड़ श्रम-घंटों के बराबर हैं।

Product Details

ISBN: 9789364103244
Publisher Date: 2025
Author:
Binding: Hardback
Language: Hindi
No. of Pages: 4800
Weight: 3.500
Width: 15.2
Height: 8

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